कृषि एवं अनुसंधान स्तर पर एक नाइट्रजन स्रोत के रूप में नीम लेपित यूरिया के साथ चावल एवं गेहूं की फसलों पर किए गए कृषि विज्ञान संबंधी प्रयोग से अधिक मात्रा में उपज हुई है । नीम लेपित यूरिया की सक्षमता एवं कृषकों द्वारा इसकी स्वीकृति को ध्यान में रखते हुए जुलाई, 2004 में कृषि मंत्रालय ने नील लेपित यूरिया को पीसीओ में शामिल किया गया । नीम लेपित यूरिया के उपयोग में सुधारतथा 'एन', 'पी' एवं 'के' के उपयोग में सार्थक वृद्धि हुई है । रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने वर्ष 2008 से नीम लेपित यूरिया के विनिर्माताओं को यूरिया को लेपित करने की लागत की वसूली के लिए एमआरपी से 5 प्रतिशत अधिक दर पर नीम लेपित यूरिया बेचने की अनुमति दी है तथापि नीम आयल की लागत और इस प्रकार नीम लेपित यूरिया के उत्पादन की लागत में पर्याप्त वृद्धि हुई है । भारत सरकार की अधिसूचना के अनुसार कंपनी अपनी यूरिया की कुल स्थापित उत्पादन क्षमता का अधिकतम 35 प्रतिशत नीम लेपित यूरिया उत्पादित एवं विक्रय कर सकती हैं । कृषि वैज्ञानिकों के लिए न्यूट्रेंट्स का दक्षता पूर्वक उपयोग कर कृषि उत्पादन बढ़ाना महत्वपूर्ण कारक है । आर्थिक स्तर पर अन्य दूसरे माइक्रोन्यूट्रेंट के साथ नाइट्रोजनों,फास्फोरस, पोटेशियम का संतुलित उपयोग से उपज में वृद्धि हुई है । तीन बड़े न्यूट्रेंट नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश में से कई कारणों से नाइट्रोजन पर अधिक ध्यान केंद्रित हुआ है । नाइट्रोजन फसल न्यूट्रेंट के रूप में उपयोग किए जा रहे विभिन्न प्रकार के उर्वरकों के उपलब्ध रूप में सरलता से परिवर्तित हो जाता है । नाइट्रेट के रूप में नाइट्रोजन विशेषकर सिंचाई की स्थिति में अधिक गतिशील होने के कारण टपकने की प्रक्रिया में भी घुलमिल जाता है ।
नाइट्रोजन पर कई प्रसंग उपलब्ध हैं जो कि प्रदर्शित करते हैं कि सिंचित एवं पानी की स्थिति में नाइट्रोजन की पुन: प्राप्ति विभिन्न प्रकार की क्षति जैसे कि डि-नाइट्रीफिकेशन, अमोनिया वोलेटाइजेशन एवं लीचिंग आदि के कारण मुश्किल से 35 प्रतिशत होती है । विश्व में 50 प्रतिशत नाइट्रोजन की पूर्ति यूरिया के माध्यम से होती है और भारत में परिदृश्य अलग नहीं
है । नाइट्रोजन की इन क्षतियों को न्यूनतम रखने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने बहुत सारी कृषि विज्ञान संबंधी सिफारिशें की हैं । प्रचलित सिफारिशें छिद्र/ड्रिल देखकर डीप प्लेसमेंट, वेंड प्लेसमेंट एवं स्पिलिट एप्लीकेशन हैं । ये सभी पद्धतियां अवशोषण के स्थान पर आवश्यकता की ठीक मात्रा उपलब्ध कराती हैं। यूरिया के बडे दाने के प्रयोग सेविलय में विलंब होता है ।
कृषि संबंधी प्रेक्टिस के अलावा यूएसए में विभिन्न प्रकार के नाइट्रीफिकेशन इनहीबिटर्स जैसे कि नाइट्राप्रिन(एन सर्व) एवं टेराजोल (ड्वेट) विकसित किए गए थे । ये नाइट्रीफिकेशन एजेंट्स बहुत अधिक खर्चीले हैं और भारत में फसल उत्पादन की लागत को और बढ़ाते हैं ।
कम नाइट्रोजन उपयोग दक्षता को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक समझा गया कि यूरिया से नाइट्रोजन क्षति को कम करने के लिए कुछ देशी सामग्री का उपयोग एवं लेपन प्रक्रिया का उपयोग किया जाए । विभिन्न रूपों में नीम आयल जैसे कि नीम आयल केक का उपयोग । नीम आयल एवं अन्य नीम उत्पाद का उपयोग यूरिया से रिलीज को कम करके इसकी उपयोग क्षमता को बढ़ाता है । नीम आयल में विविध प्रकार के कड़वे विशेषकर मेलासिंस होते हैं जो कि यूरिया नाइट्रीफिकेशन की प्रोसेस को रिटार्ड करने के पहचाने गए हैं ।
एनएफएल में नीम लेपित यूरिया का उत्पादन
नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड ने वर्ष 2002 में नीम लेपित यूरिया उत्पादन की तकनीक का पानीपत इकाई में मानकीकरण किया। तब से एफसीओ में निर्धारित स्पेशिफिकेशन्स के अनुसार नीम आयल कंटेंट का कंसेंट्रेशन मेंटेन रखने, इसकी प्रक्रिया एवं लागू साल्यूशंस में यूरिया प्रिल पर नीम आयल लेपन में एकरूपता बनाए रखने के लिए कई परिवर्तन किए गए । गहन कृषि परीक्षण के परिणामों के आधार पर जहां कि खेती में सामान्य प्रिल यूरिया से नीम लेपित यूरिया उच्च पाया गया । एनएफएल भारत की पहल कपंनी बनी जिसे कि भारत सरकार की अधिसूचना संख्या एसओ 807 (ई) दिनांक 9 जुलाई, 2004 द्वारा नीम लेपित यूरिया उत्पादित कर विपणन करने की अनुमति मिली । वर्तमान में कंपनी की अपनी तीनों इकाइयों नामत: बठिण्डा, पानीपत एवं विजयपुर में नीम लेपित यूरिया के उत्पादन की सुविध है । इन इकाईयों में उत्पादित नीम लेपित यूरिया उन 14 राज्यों में बेचा जाता है जहां पर कि कंपनी यूरिया का विक्रय करती है ।
इकाईवार एवं वर्षवार नीम लेपित यूरिया का उत्पादन (मी.टन में)
वर्ष |
इकाई |
कुल |
||||
नंगल |
बठिण्डा |
पानीपत |
विजयपुर |
|||
2003-04 |
- |
12627 |
61090 |
- |
73717 |
|
2004-05 |
- |
112004 |
102476 |
9762 |
224242 |
|
2005-06 |
- |
147677 |
143018 |
197400 |
488095 |
|
2006-07 |
- |
56085 |
74603 |
184575 |
315263 |
|
2007-08 |
- |
38762 |
6187 |
57820 |
102769 |
|
2008-09 |
- |
2355 |
182 |
9377 |
11914 |
|
2009-10 |
- |
12163 |
8673 |
16812 |
37648 |
|
2010-11 |
- |
40283 |
40137 |
39646 |
120066 |
|
2011-12 |
- |
73829 |
131570 |
434169 |
639568 |
|
2012-13 |
- |
70834 |
119872 |
892413 |
1083119 |
|
2013-14 |
103175 |
148000 |
161141 |
851149 |
1263465 |
|
2014-15 | 157692 |
223722 |
217923 |
765968 |
1365305 | |
2015-16 | 465906 |
487290 | 507595 |
1809408 | 3270199 | |
2016-17 |
501759 |
568418 |
543057 |
2196820 |
3810054 |
|
2017-18 |
542829 |
562501 |
560070 |
2144850 |
3810250 |
|
2018-19 | 540860 | 584000 | 573918 | 2160529 | 3859307 | |
2019-20 | 574900 | 562453 | 552354 | 2037030 | 3726737 |
अग्रणी प्रदर्शन
वर्ष 2004-05 से एनएफएल 200 से 250 तक कृषक भूमि पर संबंधित राज्य कृषि विश्व विद्यालयों के सहयोग से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में अग्र पंक्ति प्रदर्शन कर रहा है । नीम लेपित यूरिया के उपचार से फसलों की प्रकृति एवं स्थान के आधार पर उत्पादन 6-11 प्रतिशत तक बढ़ा है ।
अन्य लाभ
उपज में वृद्धि के अलावा नीम लेपित यूरिया के उपयोग से धान एवं गेहूं की फसलों को अन्य लाभ भी होते हैं । उत्तर प्रदेश के एक स्थान पर किसानों यह पाया कि धान की फसल में नीम गई के मीनेस पर्याप्त रूप से कम हो गए हैं । दूसरी जगह पानीपत मेंे पाया कि धान की फसल में लीफ फोल्डर एवंं स्टीम बोरर की कोई घटना नहीं हुई । पंजाब राज्य के संगरूर एवं गुरदासपुर में किसानों ने पाया कि गेहूं की फसल में नीम लेपित यूरिया के उपयोग से सफेट चींटियों की समस्या कम हुई है । यह नीम आयल की सुगंध से संभव हुआ है जो कि स्थिर पानी में विलय एवं कीटनाशी क्षमता के कारण है ।